छत्तीसगढ़ के जंगलों में उगने वाली चिरौंजी ग्रामीण किसानों के लिए आय का सोना बन रही है। जानिए कैसे यह बीज गांवों में 300 रुपये से शहरों में 4000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है और कैसे आप भी इसकी खेती से मोटी कमाई कर सकते हैं।
चिरौंजी की खेतीअनोखी कहानी
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के घने जंगलों में एक अनोखा प्राकृतिक खजाना छिपा हुआ है – चिरौंजी के बीज। यह छोटा सा दिखने वाला बीज स्थानीय किसानों के लिए आर्थिक संकट से उबरने का माध्यम बन रहा है। गांवों में मात्र 200-300 रुपये प्रति किलो बिकने वाली यह प्राकृतिक वस्तु शहरी बाजारों में 3000-4000 रुपये प्रति किलो तक की कीमत पा रही है।
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चिरौंजी क्या है?
चिरौंजी (Buchanania lanzan) एक प्रकार का वनौषधीय पेड़ है जिसके बीज पारंपरिक आयुर्वेदिक दवाओं और व्यंजनों में उपयोग किए जाते हैं। यह पेड़ मुख्य रूप से भारत के मध्य और उत्तरी भागों में पाया जाता है। चिरौंजी के बीजों का उपयोग मिठाइयों, हलवों और पारंपरिक दवाओं में किया जाता है।
क्यों है खास?
स्वास्थ्य लाभ:
- मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए उत्तम
- पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है
- एनीमिया से बचाव
- हड्डियों को मजबूती प्रदान करती है
आर्थिक महत्व:
- कम लागत में उच्च मुनाफा
- बाजार में स्थिर मांग
- प्रसंस्करण के बाद मूल्य वृद्धि

कीमत का अंतर
चिरौंजी की कीमत में होने वाला भारी अंतर सीधे तौर पर बिचौलियों और बाजार तक पहुंच पर निर्भर करता है:
स्थान | कीमत (प्रति किलो) |
---|---|
ग्रामीण बाजार | ₹200-₹300 |
जिला मुख्यालय | ₹800-₹1200 |
महानगर (दिल्ली, मुंबई) | ₹2500-₹4000 |
आयुर्वेदिक दवा कंपनियां | ₹5000+ |
खेती की पूरी प्रक्रिया
1. भूमि का चयन:
- जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी उत्तम
- pH मान 6.5-7.5 के बीच
2. बीज उपचार:
- ताजे बीजों का चयन
- 24-48 घंटे पानी में भिगोएं
3. रोपण तकनीक:
- जून-जुलाई में बुवाई उत्तम
- 5×5 मीटर की दूरी पर पौधे लगाएं
4. देखभाल:
- प्रारंभिक 2 वर्ष नियमित सिंचाई
- जैविक खाद का प्रयोग
5. उत्पादन:
- 5-6 वर्ष बाद फलन प्रारंभ
- एक पेड़ से 15-20 किलो वार्षिक उत्पादन
मार्केटिंग रणनीति
स्थानीय किसानों को अधिक लाभ दिलाने के लिए:
- सहकारी समितियों का गठन
- जियोटैगिंग के माध्यम से प्रामाणिकता
- सीधे बाजार से जुड़ाव
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बिक्री
- मूल्य संवर्धन (पैकेजिंग, प्रसंस्करण)
सरकारी योजनाएं
छत्तीसगढ़ सरकार की विशेष पहल:
- वन धन योजना
- लघु वनोपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य
- प्रसंस्करण इकाइयों को अनुदान
सफलता की कहानियां
जशपुर के रहने वाले किसान रमेश सिंह ने बताया, “पहले हम चिरौंजी को स्थानीय बाजार में सस्ते दामों पर बेच देते थे। अब सहकारी समिति के माध्यम से सीधे दिल्ली के व्यापारियों से संपर्क कर हमें 1800 रुपये प्रति किलो तक कीमत मिल रही है।
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भविष्य की संभावनाएं
विशेषज्ञों के अनुसार चिरौंजी का बाजार अगले 5 वर्षों में 20% वार्षिक की दर से बढ़ने की संभावना है। आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती मांग और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के प्रति रुझान इसकी मांग को और बढ़ाएगा।
चिरौंजी की खेती वनवासी किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। उचित मार्गदर्शन और बाजार संपर्क से यह छोटा सा बीज ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकता है। सरकार और निजी संस्थानों को मिलकर इन किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने के लिए प्रयास करने चाहिए।