तमिलनाडु के कोयंबटूर ज़िले का पोल्लाची इलाक़ा पहले नारियल की खेती के लिए जाना जाता था। लगभग 60,000 एकड़ ज़मीन पर नारियल के पेड़ लहराते थे। लेकिन अब वक़्त बदल रहा है। किसान धीरे-धीरे नारियल से मुंह मोड़कर जायफल की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। और इसकी सबसे बड़ी वजह है—अच्छी कमाई और कम मेहनत।
किसानों का कहना है कि एक जायफल का पेड़ हर साल नारियल की तुलना में ₹3,000 से ₹4,000 ज़्यादा कमाई करवा देता है। तो भला कौन नहीं चाहेगा कम मेहनत में ज़्यादा मुनाफा?
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पोल्लाची का जायफल क्यों है इतना खास?
पोल्लाची, अन्नामलाई और कोट्टूर जैसे इलाक़ों में उगने वाला जायफल अपने खास खुशबू और गुणवत्ता (क्वालिटी) के लिए जाना जाता है। यहां की मिट्टी, मौसम और बागवानी की तकनीकें मिलकर जायफल को एकदम बेहतरीन बना देती हैं।
कहते हैं कि केरल जायफल उत्पादन में आगे है, लेकिन क्वालिटी के मामले में पोल्लाची का जायफल बाज़ी मार लेता है। यही वजह है कि दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े शहरों के व्यापारी खुद पोल्लाची आकर जायफल खरीदते हैं।

जून से नवंबर तक होती है कटाई माल जाता है विदेश तक
जायफल की फसल जून से लेकर नवंबर तक पकती है। उसके बाद इसे सुखाकर पैक किया जाता है और देशभर में सप्लाई किया जाता है। इतना ही नहीं, पोल्लाची का जायफल अब विदेशों में भी भेजा जा रहा है। अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों से भी इसकी मांग बढ़ रही है।
और मजेदार बात ये है कि किसान इसे नारियल के पेड़ों के बीच में इंटर-क्रॉप के तौर पर उगाते हैं। यानी नई ज़मीन नहीं चाहिए, पुराने नारियल के बागानों में ही जायफल उगाया जा सकता है।
जायफल के दाम और मुनाफा किसान बना ‘बिज़नेस मैन’
इस समय बाज़ार में जायफल की कीमत ₹100 प्रति किलो तक जा रही है। और अगर क्वालिटी बेहतरीन हो तो ₹1,700 से ₹2,800 प्रति क्विंटल भी मिल जाते हैं।
अब ज़रा सोचिए, एक पेड़ सालाना कितनी उपज देता है और अगर आपके पास 100 पेड़ हैं तो आपकी कमाई कितनी होगी? यही वजह है कि किसान नारियल से जायफल की ओर रुख कर रहे हैं।
कोको से जायफल तक बदलते ट्रेंड की कहानी
कोट्टूर के मलैयंडीपट्टिनम गांव के किसान रंजीत पहले कोको (चॉकलेट वाला फल) की खेती करते थे। लेकिन कोको में मज़दूरी ज़्यादा और कमाई कम थी। ऊपर से मज़दूर भी समय पर नहीं मिलते थे।
तभी उन्होंने जायफल की खेती शुरू की—वो भी नारियल के पेड़ों के बीच में। अब पिछले 10 सालों से वो 10 एकड़ ज़मीन पर जायफल उगा रहे हैं और खूब मुनाफा कमा रहे हैं।
अब किसान अकेले नहीं, बनी है ‘किसान उत्पादक संघ’ कंपनी
शुरुआत में व्यापारी खुद गांव-गांव जाकर जायफल खरीदते थे। लेकिन अब किसानों ने कमर कस ली है। उन्होंने मिलकर एक कंपनी बना ली है—‘किसान उत्पादक संघ’।
इस कंपनी के ज़रिए पिछले तीन सालों में 100 से 120 टन जायफल एक्सपोर्ट हो चुका है। इससे किसानों को सीधे अच्छे दाम मिलते हैं और उन्हें बिचौलियों से भी छुटकारा मिल गया है।
पोल्लाची की खुशबू दिल्ली-मुंबई तक
हालांकि जायफल उत्पादन में केरल सबसे आगे है और वहां से हर साल करीब 18,000 टन जायफल एक्सपोर्ट होता है, लेकिन पोल्लाची की खुशबू कुछ और ही है। दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में अब पोल्लाची का जायफल पहचान बनाने लगा है।
बड़े-बड़े व्यापारी खुद पोल्लाची आकर किसान से सीधे सौदा करते हैं। और क्यों न करें, क्वालिटी और खुशबू दोनों में पोल्लाची का जायफल अव्वल है।
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जायफल की खेती के फायदे
- एक बार पेड़ लगाइए, सालों तक कमाई पाइए।
- नारियल के पेड़ों के बीच में उगाइए, नई ज़मीन की झंझट नहीं।
- कम मज़दूरों में काम चलता है।
- फसल तैयार होने के बाद सूखाकर भंडारण भी आसान।
- एक्सपोर्ट का रास्ता खुला है, यानी कमाई सिर्फ देश से नहीं, विदेश से भी।
अंत में जायफल बना नई उम्मीद की खुशबू
आज जब खेती में लागत बढ़ रही है और मुनाफा घटता जा रहा है, तो पोल्लाची के किसानों ने जायफल के जरिए एक नई उम्मीद जगा दी है। ये एक ऐसा फसल है जिसमें स्वाद है, खुशबू है, और सबसे बड़ी बात—कमाई है।
तो अगली बार जब आप अपने खाने में जायफल का तड़का लगाएं, तो याद रखिएगा—उस खुशबू में पोल्लाची की मिट्टी की महक छुपी है।