काफल एक पहाड़ी फल है जो स्वाद में खट्टा-मीठा होता है और सेहत के लिए बहुत फायदेमंद भी। गर्मी के मौसम में अप्रैल से जून तक बाजारों में इसकी खूब मांग रहती है। लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं, क्योंकि इसमें औषधीय गुण भी भरपूर होते हैं। यही वजह है कि काफल को “पहाड़ों का अनमोल तोहफा” भी कहा जाता है।
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कहां और कैसे उगाया जाता है काफल
काफल की खेती के लिए ठंडी से मध्यम जलवायु (Sub-temperate to temperate) सबसे बढ़िया मानी जाती है। ये फल ज़्यादातर 1300 से 2100 मीटर ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए ढलवां, चिकनी, लाल या जंगल की लेग्युमिनस मिट्टी सबसे अच्छी रहती है, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो। काफल के पौधे बीज से तैयार किए जाते हैं। पहले नर्सरी में पौधा तैयार होता है और फिर खेत में रोपाई की जाती है। एक बार लगाने के बाद इसे फल देने में लगभग 6 से 8 साल का समय लग जाता है।
कम पानी ज्यादा फायदा
काफल का पौधा बहुत ज्यादा पानी नहीं मांगता, इसीलिए यह सूखा-सहनीय जलवायु (drought-resistant) में भी आसानी से उग सकता है। इसलिए ये किसानों के लिए एक फायदेमंद और टिकाऊ विकल्प बन सकता है, खासकर पहाड़ी इलाकों में।
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काफल का बाजार भाव
काफल फल बाज़ार में लगभग ₹400 से ₹500 प्रति किलो तक बिकता है। इसकी मौसमी उपलब्धता और सीमित पैदावार के कारण इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन इसका स्वाद और स्वास्थ्य लाभ कीमत से कहीं ज़्यादा होते हैं।